आसमान से दूर
ज़मीन के बहुत करीब
एक भूला भटका सा,
चाँद लटका सा...
कभी पेड़ की आड़ लेता,
तो कभी टीन की छत से छिपता
कभी चलती गाड़ी की खिड़की से चढ आता
तो कभी घर के पिछवारे में जा गिरता
पानी में तैरता
साथ साथ चलता
तो कभी जम जाता रात की उनींदी आंखों में...
कभी यूँ ही झांकता मस्ताया बच्चा सा,
आसमान के उस छोर से.
सब अथ्केली और उजाली रातों के बाद,
आज का चाँद है चुप, अकेला, पिघला सा....
जैसे रंग भर कर उस में
हाथ से मिटा दिया हो किसी ने.
April 4, 2007, 12.08 am
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