बहुत पुरानी बात है,
शब्द के जन्म से पहले शायद,
या फिर उस से भी पहले की
जब शब्द के होने का आभास नहीं था शायद….
शब्द के जन्म से पहले शायद,
या फिर उस से भी पहले की
जब शब्द के होने का आभास नहीं था शायद….
जब सुबह, चिड़िया के परों में उलझ जाती थी
जब फूलों से गुदगुदी हवा बहुत गुनगुनाती थी
जब उस छोर के तारे इस और के चेहरे सहलाते थे
और झोली भर कहानियां बुन जाते थे
जब बसेरा नदी के पास ही था सब का
और गुनगुने पानी का गीत भी था बराबर सब का
जब खुशी अपने होने का चिन्ह
मुस्कराहट पर बिछा जाती थी
और अजनबी हर एक टीस
आंखों को हल्का कर जाती थी
तब, सब बातें जीवित थीं
धड़कन भी सुनाई देती थी उनकी…
और फिर एक दिन
शब्द ने आ कर
शोर कर दिया हर आहट में
और गीत डूब गए
शब्दों की बुनावट में...
लेकिन
अभी भी,
कभी कभी
जो बातें शब्द नहीं ओढ़ पातीं
वो कह जाया करती हैं सब कुछ
मुस्कुराहटें लौटा लाती हैं
और आंखों का पानी भी शायद...
जब फूलों से गुदगुदी हवा बहुत गुनगुनाती थी
जब उस छोर के तारे इस और के चेहरे सहलाते थे
और झोली भर कहानियां बुन जाते थे
जब बसेरा नदी के पास ही था सब का
और गुनगुने पानी का गीत भी था बराबर सब का
जब खुशी अपने होने का चिन्ह
मुस्कराहट पर बिछा जाती थी
और अजनबी हर एक टीस
आंखों को हल्का कर जाती थी
तब, सब बातें जीवित थीं
धड़कन भी सुनाई देती थी उनकी…
और फिर एक दिन
शब्द ने आ कर
शोर कर दिया हर आहट में
और गीत डूब गए
शब्दों की बुनावट में...
लेकिन
अभी भी,
कभी कभी
जो बातें शब्द नहीं ओढ़ पातीं
वो कह जाया करती हैं सब कुछ
मुस्कुराहटें लौटा लाती हैं
और आंखों का पानी भी शायद...
जब ये शब्द न होते तो हम इशारों में बातें किया करते
ReplyDeleteलेकिन ये शब्द ही तो हें जिन्हें हम कभी इशारों में बयां करते थे ....