बीज बोया…
कोसी कोख मिटटी की,
सूरज की किरणों के उगते
सींचा उसे सपने भर हाथों नें,
आंखों का अमृत छिड़क कर
पलोसा,
दुलार दिया।
और फिर ऐसे,
अर्सों तक,
बरसों तक
परोसा उसे
प्यार,
ओक भरी प्रार्थना,
पलक से छंटी धूप
और
कांच... बहती नदी का
ऐसे
उस पौधे को पाला पोसा
बड़ा किया।
आओ उसे आज उखाड़ आयें,
इस प्रेम को उजाड़ आयें.
JANUARY 16, 2008
Painting Courtesy: jacquewadsworth.typepad.com
hi.. where are U?? ur moobile is off.. these poems are lovely.. but pl call. love chitleen
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