उसकी बातें सबको हैरान कर रहीं थीं
शब्द थे के आँखों के इर्द गिर्द बर्फ जमाने लगे थे
चेहरों पर मुस्कराहट की जाली तो थी
पर दूर कहीं गहरे धंसता आभाव का आभास भी था
शब्द थे के आँखों के इर्द गिर्द बर्फ जमाने लगे थे
चेहरों पर मुस्कराहट की जाली तो थी
पर दूर कहीं गहरे धंसता आभाव का आभास भी था
लफ़्ज़ों ने रेशम के धागे तो बराबर बुने थे आज भी लेकिन
कपडे खुरदुरे से हो चले थे
कपडे खुरदुरे से हो चले थे
सब अपने अपने कपड़ों को एक दुसरे की नज़र से बचा कर गुज़र जाना चाहते थे
लेकिन उसकी बातें हैरान कर रहीं थीं...
के बस समझने की उम्मीद में रुक से गए थे...
उसकी बातें कितनी अलग थीं...
पर राज़ कितना सरल था
उसकी बातों पर दुनिया की परतें नहीं जमीं थीं बस
इतनी सी बात थी...
पर सबके लिए कितनी अनसुनी, अनजानी सी....
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