Wednesday, October 5, 2011

अक्टूबर ५



सोचा सब खाली कर दूं,
अपने अन्दर की अलमारी,
बीते साल धो डाले,



यादें दान में दे डालीं और
कुछ सूखे पत्ते और मेरी diary के नम पन्ने खिड़की पर,
बिखेर दिए,



दानों की तरह...
... के कोई परिंदा उड़ा कर बीते मौसमों को लौटा आये...
सब परतें झाड़ीं... और फिर सो गयी.
आज सुबह खोल कर देखा,



तुम अभी भी वहीँ बैठो हो...

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